शुक्रवार, 27 दिसंबर 2013

अब समझा मोदी की बात का मर्म

उस दिन मेरा साप्ताहिक अवकाश था. एक मित्र को स्टेशन छोड़ कर रात में घर लौट रहा था. घर से करीब दो सौ कदम दूर एक बंद गली से किसी प्रतिद्वंद्वी को परास्त कर या परास्त होकर तेजी से एक कुत्ता मेरी मोटरसाइकिल के अगले चक्के में घुस आया. गाड़ी फिसली और मैं धड़ाम. मुङो ठीक-ठीक इतना ही याद है. बाकी का घटनाक्रम इतनी तेजी से हुआ कि मुङो पता ही नहीं चला. मुङो आसपास के लोगों ने उठाया और मैं किसी तरह वहां से घर पहुंचा. रातभर दर्द से परेशान रहा. रातभर आपकी जगह दर्द की याद आती रही.. दूसरे दिन जब डॉक्टर से सामना हुआ, तो पता चला कि पैर में फ्रैर है. प्लास्टर करवा कर घर लौटा. मित्रों, रिश्तेदारों व जाननेवालों की तरफ से कुशलक्षेम जानने का सिलसिला शुरू हुआ. कुछ घर पहुंचे और कई ने फोन किया. अजीब लगता है, एक ही बात का रिपीट टेलीकास्ट करते रहो. किसी से विस्तृत, तो किसी से संक्षेप में. एक अलग तरह का अनुभव है यह. इस दौरान कई लोगों ने मुझसे यह भी जानना चाहा कि उस कुत्ते का क्या हुआ? वह जिंदा है या..? उसका पैर सलामत है या..? इन सवालों का सामना करते हुए शुरू में तो मुङो थोड़ा अजीब लगा, पर बाद में मैं इसे लेकर संजीदा हो गया. मैं इसे स्वाभाविक सवाल के रूप में देखने लगा.
तब मुङो याद आया नरेंद्र मोदी का वह बयान- ‘अगर हम गाड़ी चला रहे हैं या कोई और ड्राइव कर रहा है और हम पीछे बैठे हैं, फिर भी छोटा सा कुत्ते का बच्चा भी अगर गाड़ी के नीचे आ जाता है तो हमें पेन फील होता है.’ मैं सोच में पड़ गया कि मैं तो अपने दर्द से ही परेशान हूं. मुङो अपनी ही तकलीफें महसूस हो रही हैं. मैं इस बात से दुखी हूं कि मेरा आर्थिक नुकसान हुआ, स्वास्थ्य का नुकसान हुआ. मेरी छुट्टियां बरबाद हुईं. पर मुङो उस कुत्ते की एक बार भी चिंता नहीं हुई कि उसका क्या हुआ? क्या वाकई उसका भी पैर टूट गया होगा? कहीं उसकी जान पर तो नहीं बन आयी? उसकी देख-रेख कौन कर रहा होगा? वह कहां होगा, कैसे होगा? अब मुङो अपना दर्द कुछ कमतर लगने लगा. मैं सोच में पड़ गया. मुङो आत्मग्लानि महसूस होने लगी, पर मेरे सामने मुश्किल यह थी कि मैं खुद ही चल नहीं पा रहा था ऐसे में उस कुत्ते की शिनाख्त करना या उसके बारे में ठीक-ठीक पता लगा पाना मुश्किल था. बाद में मैंने खुद को दृढ़ करते हुए यह निश्चय किया कि मैं उस अज्ञात कुत्ते की सलामती के लिए प्रार्थना करूंगा. अफसोस तो मुङो भी है कि एक निदरेष कुत्ता मेरी गाड़ी के नीचे आ गया. मैं तो दोहरा गुनहगार हूं क्योंकि गाड़ी भी मेरी थी और ड्राइव भी मैं ही कर रहा था. इस पश्चाताप की अग्नि में जलते हुए एक डर फिर भी मुङो परेशान कर रहा है कि कहीं फिर कोई मुझसे यह न पूछ ले कि ‘उस कुत्ते का क्या हुआ?’

शनिवार, 14 दिसंबर 2013

आप से भी खूबसूरत ‘आप’ के अंदाज हैं

‘दिल्ली दूर है’ वाली कहावत झूठी साबित हो चुकी है. आम आदमी ने यह साबित कर दिखाया है कि उसे सिर्फ राजनीति का छिद्रान्वेषण करना ही नहीं, बल्कि लाइलाज हो चुके मर्ज का इलाज करना भी आता है. हालिया संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी (आप) को नयी दिल्ली में भले ही सिर्फ 28 सीटें ही मिल पायीं, पर उसने 15 वर्षो से सत्तासीन कांग्रेस को खदेड़ दिया. इस चक्कर में भाजपा कहीं की नहीं रह गयी. सबसे अधिक 32 सीटें हासिल करके भी भाजपा की स्थिति ‘सब धन 22 पसेरी’ वाली है. लेकिन यहां हम बात करेंगे ‘आप’ की. जी हां, आम आदमी पार्टी की. तमाम कयासों के बाद भी कांग्रेस और भाजपा ‘आप’ को वोटकटवा समझते रहे और जब रिजल्ट आया तो गच्चा खा गये. चुनाव परिणाम आने से पूर्व तक अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी ‘को जीभर गरियानेवाली कांग्रेस अब उससे बिना शर्त समर्थन लेने की चिरौरी कर रही है. जाहिर सी बात है उसे दिल्ली के पब्लिक की चिंता नहीं बल्कि अपना हित दिख रहा है. कांग्रेस आप की सरकार बनवा कर दिल्ली के लोगों की सिम्पैथी हासिल करना चाहती है. साथ ही आप के प्रकोप से बचने का रास्ता भी ढूंढ रही है. पर केजरीवाल कांग्रेस की यह होशियारी खूब समझते हैं. वह सतर्क हैं. इधर कई टीवी चैनलों पर दिखाये जा रहे सरकार बनाने के फामरूले की तर्ज पर किरन बेदी ने भी अपनी मुफ्त सलाह हवा में उछाल दिया ‘भाजपा और आप मिल कर सरकार बनायें.’ पर इस फ्री सलाह को भी न तो भाजपा ने तवज्जो दी और न ही आप ने. इधर आयुर्वेद की महंगी दवाएं बेचने और मोटी फी लेकर योग सलाह देने वाले बाबा रामदेव ने भी केजरीवाल को एक मशविरा फ्री में दे दिया ‘जब कांग्रेस समर्थन दे रही है तो केजरीवाल को सरकार बनाने के लिए आगे आना चाहिए.’ इस सब चीजों को नजरअंदाज कर आप के लोग जंतर-मंतर पर जीत का जश्न मनाने में लगे रहे. दरअसल, राजनीति के आंगन में उतरने के बाद इसकी ‘टेढ़ी चाल’ और ‘ननु नच’ के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी आप वालों को भी हो गयी है. वे जानते हैं कि दूसरे के कंधे पर रखकर  बंदूक चलाने वालों की यहां कोई कमी नहीं है. सच तो यह है कि कई राजनीतिक धुरंधरों को ‘दृष्टि दोष’ है, पर अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी अपने दूरदृष्टि का इस्तेमाल कर रही है. दिल्ली में जीत से दोगुने हुए जज्बे के साथ आप ने लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है. उन्हें पता है दिल्ली में दोबारा चुनाव ही अब एकमात्र विकल्प है. झाड़ू आप का राष्ट्रीय चुनाव चिन्ह बन गया है. अब आपका मिशन है ‘कश्मीर से कन्याकुमारी.’ सचमूच सफाई तो जरूरी है.  इन दिनों कुछ गीत खासे लोकप्रिय हो रहे हैं- आप यहां आये किसलिए.., आप से भी खूबसूरत आप के अंदाज हैं.. आप भी इसका आनंद लीजिए.