बुधवार, 17 अक्तूबर 2012

अथ श्री जमाई कथा

बचपन से ही मुङो शादी का बहुत क्रेेज था. सोचता था जब मेरी शादी होगी मैं भी किसी का दामाद बनूंगा. खूब आवभगत होगी. मैं भी ‘दामादगीरी’ का खूब लुत्फ उठाऊंगा. पर, अफसोस कि शादी तो हुई पर ‘दामादगीरी’ का लुत्फ उठाने का वह ‘सुअवसर’ न मिल सका. इस बात का जिक्र मैं यहां इसलिए कर रहा हूं क्योंकि देश में इन दिनों एक जमाई राजा ने धमाल मचा रखा है. इस देश में तो हर जमाई, राजा होता है, तो राजा के जमाई का क्या कहना. कुछ ‘दामाद’ उनसे इसलिए खुन्नस खाये हुए हैं कि क्योंकि उनको वैसा मौका न मिला. खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे की तर्ज पर कुछ लोग उन्हें ‘राष्ट्रीय दामाद’ कह रहे हैं तो कुछ ‘सरकारी दामाद’. अजी, मैं पूछता हूं इसमें नया क्या है? सरकारी दामादों की परंपरा तो अंगरेजों के जमाने से चली आ रही है. वैसे भी बड़े-बुजुर्ग कह गये हैं—बेटियां परायी ‘धन’ होती हैं और दामाद सबसे ‘सम्माननीय’. भारतीय परंपरा में दामादों का बहुत महत्व रहा है, आज से नहीं प्राचीनकाल से ही.


जमाइयों की बात चली है तो मुङो याद आ रहा है गांव-जवार में कुछ घरजमाइयों को मैं भी जानता हूं. और कुछ हो न हो ये घर जमाई गांव-जवार के लोगों के मनोरंजन का साधन अवश्य होते हैं. इनसे हंसी-मजाक, ठिठोली करने और तंज कसने से कोई बाज नहीं आता. इनमें से कुछ तो जिंदादिल होते हैं जो यह सब ङोल जाते हैं और कुछ ऐसे भी होते हैं जो बात-बात पर बिफर जाते हैं. नतीजा झगड़ा-फसाद, बवाल और मनमुटाव. खैर ताना मारने वाले इस सबकी परवाह कहां करते हैं. दामादों को मेहमान भी कहा जाता है. अब जो दामाद घरजमाई ही बन गया वह कैसा मेहमान और कैसी उसकी मेहमानवाजी? वह खायेगा भी और खिलायेगा भी. वह सुनेगा भी और सुनायेगा भी. वह जो मरजी सो करेगा. आखिर घरजमाई जो ठहरा. वह काजू भी खायेगा और करैला भी. ‘फ्यूचर डिपेंड ऑन योर सिचुएशन’.

बहरहाल, हम जमी-जमाई अवधारणा से बाहर आते हैं और फ्रेश बात करते हैं. अगर आप शादीशुदा हैं तो सिवाय अफसोस करने के आपके पास कोई और विकल्प है नहीं. हां, खुशकिस्मत हैं वे जिनकी अभी तक शादी नहीं हुई. वह इसलिए क्योंकि उनमें अभी भरपूर संभावना बची है. सच कह रहा हूं. संभावना जमाई राजा बनने की, संभावना दामाद बनने की, संभावना घर जमाई बनने की. संभावना वह सब कुछ पा लेने की जिससे वह अभी तक वंचित हैं. मैं आग्रह और अपील करूंगा ऐसे तमाम संभावनाशील साथियों से कि अगर आपके लिए भी शादी जिंदगी में सिर्फ एक बार होनेवाली घटना है तो उसे सोच-समझ कर घटित होने दें. अपनी ‘दीन-दशा’ सुधारने के लिए रॉबर्ट वाड्रा की तरह किसी धन-संपदा से परिपूर्ण और राजनीतिक परिवार की सुयोग्य कन्या से सुनियोजित विवाह करें. तथास्तु!!!

1 टिप्पणी:

  1. बहुत अच्छी प्रस्तुति!
    इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (20-10-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ! नमस्ते जी!

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