बुधवार, 13 जून 2012

फिक्रमंद मां-बाप यानि मुद्दई सुस्त, गवाह चुस्त


मेरे पड़ोसी बब्बन पांडेय का सबसे छोटका बेटा जब से मैट्रिक पास हुआ है तब से उसका पूरा परिवार कुछ परेशान रह रहा है. मिसेज पांडेय तो बेटे के पास होने की मनौती उतारने मंदिर और दरगाहों का चक्कर लगा रही हैं तो तथाकथित जानकारों के दर की खाक छान रहे हैं. दरअसल, वे इस बात को लेकर कुछ दिग्भ्रमित लग रहे हैं कि मैट्रिक के बाद बेटे का दाखिला कहां और किस सब्जेक्ट में करायें. इस माथापच्ची में उनके सिर का आधा बाल तो उड़ ही गया है समङिाये. थके-हारे पांडेयजी जब घर लौटते हैं तो उनकी मलिकाइन टेंशन भगाने वाला ठंडा-ठंडा, कूल-कूल तेल की मालिश खोपड़ी पर करती हैं. पर छोटका को इस सबसे कोई लेना-देना नहीं. वह तो परीक्षा देने के बाद से ही नानी के घर मौज काट रहा है. अभी कल की ही बात है, पांडेय जी कहने लगे ‘जाने कवन नछतर में पैदा हुआ था ससुरा. उसके हर काम में कुछ ना कुछ लमेट जरू रे लगता है.’

इतना सुनते ही मलिकाइन मछियाइल मछली की तरह बिफर पड़ीं ‘अपना कोख से जनमल लक्ष्का के बारे में कोई भला ऐसा कहता है.’ पांडेय जी को भी ताव आ गया ‘आपको कुछ बुझाता-उझाता तो है नहीं. हमको परवचन सुनाने से क्या फायदा, कभी लक्ष्कवा को भी कुछ काहे नहीं समझाती हो. दिनभर ससुर के नाती बहेंगवा के जइसन इधर-उधर छिछिआइल फिरता है. उसको अपने भविष्य का कुछ चिंता फिकिर भी है? ठीक से पढ लिख लेगा तो उसी को न फायदा होगा? तुम्हारे जंतर-मंतर कराने और उसके गले में गंडा-ताबीज की घंटी बांध देने से उसका कवनो भला नहीं होने वाला. भला तो तब होगा जब वह मन लगा के पढाई-लिखाई करेगा. अपने देश के प्रथम राष्ट्रपति रजिंदर बाबू (राजेंद्र प्रसाद) की योग्यता और बुद्धिमता किसी गंडा-ताबीज और टोना-टोटका की देन नहीं थी. वह उन्होंने अपने दम पर पाया था. तुम्हरा नइहर (मायका) भी तो रजिंदर बाबू के गांव के पासे न है. तुम्हरी खोपड़िया में यह सब बात काहे नहीं समाता. दूनो माई-बेटा एके जइसन हो.’

मलिकाइन भी कहां कम थीं. नइहर की बात सुनते ही बमक गईं ‘हमर बाबूजी पेशकार थे,भाई कलक्ट्रेट में बाबू है. आपके जइसा माहटरी में सिर नहीं खपाता.’ अब बारी पांडेय जी की थी ‘ कहे देते हैं, इहे हाल रहा तो बेटवा चपरासियो नहीं बन पावेगा.’

पति-पत्नी में यह सब चल ही रहा था कि छोटका लाल सर्ट और डेनिम जींस पहने अवतरित हुआ. देखा मां-बाबूजी दोनों का चेहरा तमतमाया हुआ है. उसे समझते देर नहीं लगी कि मुद्दा मैं ही हूं. उसने भी अपने तरकश का तीर चला दिया ‘बाबूजी, मैं कल मामू के बेटे के साथ पटना जा रहा हूं. कॉमर्स कॉलेज से एडमिशन फॉर्म लाने.’ पांडेय जी स्तब्ध थे. वे खुद को ही कोसने लगे ‘मैं तो बेवजह ही परेशान हो रहा था.’

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